________________ धम्मि- राराध्याः स्वल्पफला / न पुनर्देवयोनयः // 4 // गृहं दूरे वि स्वापो / यवान्नं खबु दुर्जरं // | तदेते रूदविरसा / भोक्तुमत्रोचिता न मे // 79 // इति ध्यात्वा यवान देवी प्रति क्षिप्त्वाभ्यसाथ धत्त सः // कुर्याः कोशे गृहिवामू-निःस्वे दुर्णिदतारकान् // 16 // दुःस्थदिजवधानिच्नु-देवी 166 | रोषारुणापि तं // निचिक्षेपाश्मनं गोलं / यंत्रवादीव दूरतः / / 39 / / जन्मीलितेचणस्तत्र / दणं ज सारी बे, के जेवडे जाजन तो जातथी चराय, परंतु जे छुःखे पाराधी शकाय अने स्वल्प फलथापे एवी देवजाति कई नपयोगनी नथी. // 7 // अहिं तो पाटलो वखत घर दूर त्यज्यु, भोंये पथारी करी, अने कुःखे पची शके तेवु यवाननुं गदाण कयु, परंतु हवे या बुखं बने र. सविनानुं खाश् अहिं बेसी रहेQ मने ठीक लागतुं नथी. // 35 // एम विचारी ते यवाने देवीतरफ फेंकीने ते बोल्यो के, रांड दरिदि ! था तारा जवने तारा नंडारमा डाटो राख के जेया काळदुकाळे तने खावाने काम लागशे. // 76 // हवे क्रोधातुर थयेली ते देवीने ते दरिद्री बा. ह्मणने मारी नाखवानी जो के श्बा न थ तो पण गोफणवाळो जेम पथ्थरना गोळाने तेम ते. पीए तेने दूर फेंकी दीधो. // 7 // पनी त्यां ते आंख उघाडीने जेवो आम तेम जुए ने तो PP.AC.Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust