________________ सार्थ धम्मि- मम गंगाजलोज्ज्वला / / न तस्याः शीलशालिन्या / अन्यायं वक्तुमर्हसि // 17 // द्विजः स्माह ऋजोऽद्यापि / स्त्रीचरित्रं न बुध्यसे / मया सर्व प्रियावृत्तं / तव प्रकटयिष्यते // 15 // नृपे प्रात. गुहायाते / पत्नीमारोप्य कुट्टिमे // निःश्रेणी दुरतो मुंचे-रिति विप्रः शशास तं // 20 // मंत६ स्योपदेश स / हसयन्निजमानसे // निर्व्याजमानशे तोषं / तीर्णार्णव व दणं // 21 // गंगद तो हितीयेऽह्नि / नरनाथं व्यजिझपत // त्वयि सादिणि नो लन्यं / लने कोऽयं नयः प्रनो // वंती महासतीन दूषण बोलवु ए तमोने युक्त नथी. // 10 // वररुचिए कह्यं के अरे मूर्ख! तुं ह. जु स्त्रीचरित्र जाणतो नथी, हुं तारी स्त्रीनुं सघडं चरित्र तने देखाडी थापीश. // 17 // हवे प्रजाते राजा ज्यारे घेर थावे त्यारे तारी स्त्रीने माळपर चडावीने तारे निसरणी दूर मूकवी, एवी रीते ब्राह्मणे तेने शिखामण थापी. // 50 // तेना था उपदेशने सारविनानो जाणी मनमां ह. सतोयको धर्मदत्त दणवार जाणे समुऽ तरी गयो. होय नहि तेम संतोष मानवा लाग्यो. // 21 // बीजे दिवसे गंगदत्ते राजाने विनंति करी के हे स्वामी! आप सादी उतां हजु मारु लेणुं मने म. |ळतं नथी ए न्याय केवो! // 15 // वळी था मारा वहाला मित्रपासे मागq ए जो के शरमन P.P.AC. Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust