________________ धम्मि- // // प्रार्थना प्रियमित्रेऽत्र / कारण यद्यपि हियः // लभ्यवस्तुपरित्याग-स्तथापि खलु दुःसहः माई // 3 // धर्मदत्ते रुषं धत्ते / यावत्तहचसा नृपः // तावदागत्य तेनैव / विज्ञतो विनयांचितं // 24 // देव मे सेवकस्यौकः / स्वकपादैः पवित्रय // यथार्हदापनादस्या-धमर्णान्मां च मोचय // 25 // मुक्तकोपस्ततो जूपः / पौरवातवृतोऽचलत् // गृहेऽस्य किं गृहीतासौ। कराज्यामिति कौतुकी // 26 // | पौरेयः पुरतो त्वा / त्वरितत्वरितैः पदैः // गत्वा निजगृहं धर्म-दत्तः पत्नीमवोचत // 7 // ज. रेवू दे, तो पण लेणी वस्तु तजवी ए खरेखर मुश्केल . // 3 // एवी रीतना तेना वचनया राजा जेवामां धर्मदत्तपर गुस्से थाय बे, तेवामां धर्मदत्तेज त्यां यावी विनयपूर्वक राजाने विनंति करी के / / 24 // हे स्वामी ! मारुं सेवकनुं घर थापना चरणोवडे पवित्र करो? अने गंगदत्तने तेनी इहामुजब अपावीने मने तेना करजथी गमावो. // 25 // ( ते सांनळी) क्रोध तजीने राजा थाने घेर बेहाथे था गंगदत्त जोए शुं लेने ? एवी रीतनां कौतुकवाळो थश्ने नगरना लोकोना समूहथी युक्त थयोथको चालवा लाग्यो. // 16 // ते वखते धर्मदत्त जतावळे पगे न. गरना लोकोथी भागळ नीकळी पोताने घेर जश् सुरूपाने कहेवा लाग्यो के, // 27 // हे प्रिये! | P.P. Ac. Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust