________________ धम्मि- तैरपि // सर्वस्य वचांसीव / विघटते यवा मम // 13 // मन्ये यवविपर्यासो / विहितस्तव भार्यसार्थ या // सा विटे गंगदत्तेऽस्मिन् / नूनमस्त्यनुरागिणी / / 14 // किं न स्मरसि जो यत्त्वं / पारितोऽ. स्तदा मया // विश्वासं योषितो नीचैः / संसर्ग मा कृथा इति / / 15 / सतामग्राह्यनामासौ। गं. 67 गदत्तः सुहृत्तव // कुर्वती कृत्रिमं प्रेम / प्रियापि स्वैरिणी तव // 16 // यदि विस्मृतवान वत्स / म. बिदामंत्रमुत्तमं // पिशांचाज्यामिवैताज्यां। संप्रति बलितोऽसि तत् // 17 // धर्मदत्तोऽत्यधात्पत्नी। पण मारा यवो जूग पडे तेम नथी. // 13 // हुँ धारु बु के तारी स्त्रीए यवोने बदलावी नाख्या बे, अने खरेखर ते तारी स्त्री ते लफंगा गंगदत्तपते रागवाळी थ . // 14 // अरे! तने शुं याद नथी? में ते वखतेज तने शिखाव्यु हतुं के स्त्रीनो विश्वास तथा नीचनो संग करखो नहि. // 15 // जेनुं नाम पण सज्जनोने लेवालायक नयी, एवो ते तारो मित्र गंगदत्त ने, तया लपरथी जूठो प्रेम बतावनारी नारी स्त्री पण कुलटा बे. // 16 // वळी हे वत्स! मारी शिखामणरूप) उत्तम मंत्रने जो तुं विसरी गयो, तो हमणा पिशाचसरखा था बन्नेए तने त्यो बे. // 17 // | (ते सांगळी ) धर्मदत्ते कां के अरे ! मारी स्त्रीतो गंगाजलसरखी पवित्र जे! ए विचार) शील . Jun Gun Aaradhak Trust P.P.AC.Gunratnasuri M.S.