________________ - सार्थ | धम्मि- साधुः कोऽप्येवमूचिवान् // 14 // स्वयमेव कृतं सरस्त्वया / तरवश्व स्वयमेव रोपिताः // विधृतः स्व कृतोपयाचिते / छगल त्वं विविवीति रौषि किं / / 15 // एवं मुनिनरेंद्रस्य / श्रुत्वा वाग्मंत्रमुत्तमं // अनश्यन्मनु मेषस्य / दुःख विषमिवोरगं // 16 // अथ शांतव्यथं मेष-मशद्धं मंकु चारिणं // 153 | विलोक्य विस्मिता विषा / अपातर्मुनिपुंगवं // 17 // किम जाणि त्वया शिदो। येनायं निर्वतः पशुः // इति तैर्जाषितोऽनाणी-न्मुनिस्तामेव गीतिकां // 10 // विद्मस्त्वदुक्तभावार्थ / वयं नो. | हे बकरा ते पोतेज तळाव बनाव्यु बे, अने वृदो पण ते पोतेज रोप्यां , तेम ते पोते करेली | मानतामांज तुं पकडायो ने, माटे तुं 33 करतो शामाटे रडे . // 15 // एवी रीते ते मुनिरा जना वचनरूपी उत्तम मंत्र सांजलीने सर्पना फेरनीपेठे ते बकरानुं दुःख तुरत नाश पाम्यु. // // 16 // हवे ते बकराने दुःखरहित कई पण शब्दविना जलदी चालतो जोश्ने आश्चर्य पामेला ब्राह्मणोए मुनिने पूज्युं, के, // 17 // हे निक्षु! तें शुं कडं के जेथी था पशु शांत थ गयो? एवी रीते तेनए पूजवाथी मुनिए तेज काव्य कह्यो. // 17 // अमो जंजी बुछिवाळा तमारां वचः ननो जावार्थ समजी शकता नथी, एवी रीते ब्राह्मणोए कहेवाथी मुनिए बकरानो पूर्वगव कहो. Jun Gun Aaradhak Trust P.P.AC.Gunratnasuri M.S.