________________ धम्मि- क्रियते निवृते तो-र्जाया सा यदि निर्गुणा // तदायःशूलिकापोतं / नरं मन्यामहे वरं // 7 // / सार्थ| वार्त्तयापि विवाहस्य / नरः को नात्र नृत्यति / / पाशे पिपतिषुः पदी / चायति न तु पश्यति // // // नछता खैरचारा च / किरती दुर्वचोरजः // तृणं वात्येव दुष्टा स्त्री। ब्रमयत्यचिरानरं / / 43 |ए // ये बहिर्महिमाधारा / नदारा राजपूजिताः // गृहायाता कुन्नार्यातो / दासवत्तेऽपि विन्य ति // 200 // अपरीदयाहतं प्रांते / विशीर्ण कूटहेमवत् // कलत्रं क्वेशयत्येव / नरं सर्वस्वनाश प्यना कामगंसरखी स्त्री नाग्यश्रीज मळी शके . // 6 // पोताना सुखमाटे स्त्री स्वीकाराय ने, पण कदाच जो ते निर्गुणी निवडे तो तेना करतां तो लोखंडनी शूलीमां परोवायेला पुरुषने हं श्रेष्ट मानुं . // 7 // (पोताना) विवाहनी वातथी पण यहीं कयो पुरुष खुशी थतो नथी? केमके पाशमां पडवानी बावाको पदो कं पोतानुं नविष्य जोतो नथी. // ए // नत खे. बाचारी तथा पुर्वचनरूपी रजने नडाडती एवी वायुसरखी जुष्ट स्त्री तृणनीपेठे पुरुषने एकदम जमावे . // 7 // जे पुरुषो बहार महिमावान नदार तथा राजाना मानीता , ते पण घेर श्राव्या के दासनीपेठे कुनार्याथी डरता रहे थे. // 200 / परीदा कर्याविना स्वीकारे खोटं स. P.P.AC.Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust