________________ धम्मि- ववंदे यशोधरः // 55 // वेषान्यत्वाच्च काश्च / तान्यामनुपलदितः // प्रतीत्य पितरौ तेने / / व्याख्यामेष विशेषतः // 56 // ततस्तो मुनिना दोन-वदनौ दुःखकारणं // पृष्टौ पुत्रवियोगार्ति -मेव चक्रतुरुत्तरं // 57 / / मुनिः प्रोवाच वां स्नेहः / कोऽयमस्मिंस्तनूरुहे / / प्राप्तेषु पुत्रतां ना. | ना-नवैरखिल तुषु // 17 // तथापि यदि वां पुत्र-प्रेम्णा विह्वलितं मनः // तदा मामेव तं धर्म-दत्तं जानीतमात्मजं // 27 // ततः स्वस्खयोऽवस्था-विशेषैरुपलदय तं // श्राः किमेतत्त्व पुत्रना वियोगथी दुःखी थयेला यशोधरशेने पोतानी स्त्रीसहित दणवार सुःख विसारखामाटे (या आवी) मुनिने वांद्या. // 55 // वेष बदला जवाथी तथा दुर्बलताथी तेन तेने जळखी शक्या नहि, परंतु मुनि तो तेनने जळखीने विशेष प्रकारे व्याख्यान विस्तारवा लाग्या. // 56 / / पजी दीनमुखवाळा एवा तेनने मुनिए दुःखनुं कारण पूछवाथी तेए पण पुत्रवियोगना दुःखरूपी न. तर बायो. // 57 / / मुनिए कडं के नानाप्रकारना नवोमां सर्व प्राणीनने ज्यारे पुत्रपणुं प्राप्त थाय ने त्यारे वळ ते पुत्रमा तमारे स्नेह कखो शुं कामनो के ? // 27 // तो पण पुत्रना प्रेमथी जो तमारं मन व्याकुल थतुं होय तो पड़ी आ मनेज पोतानो पुत्र धर्मदत्त तमारे जाणीले P.P.AC.Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust