________________ 16 | धम्मि- दूरे। विमुक्ता वैजयंतु ते // 20 // इति तछाक्यचंद्रांशु-स्फीतवैराग्यसागरः // जवोदिनो नवक्षे- / मा त्र्यां / सोऽव्ययीदखिलं धनं / / 51. / / घनेन तपसा नेतु-कामः संसारपंजरं / / स्त्रीविरक्तः प्रववाज | / स पार्श्वे सुमतेर्गुरोः // 55 // एकादशांगपारीणो / विहरन स महीतले // पुरीं वाराणसीमेव / स्वामेव तपसा ययौ // 23 // वंदनायातलोकना-मुपदेशं दिशानसौ // तत्राईधर्मसाम्राज्य-सेकलत्रमपप्रथत् // 24 // चिरं पुत्रवियोगा” / दुःखविस्मृतये दणं // दयितासहितः श्रेष्टी / तं (मुनिन ) जयवंता वर्तो ? // 50 // एवी रीतनां वररुचिनां वननोरूपी चंना किरणोथी धर्मदत्तनो वैराग्यरूपी समुद्र उक्षसायमान थयो, अने तेथी संसारथी कंगळीने तेणे पोतान सघवं धन नव क्षेत्रोमां वापर्यु. // 51 // निबिड (घणरूप ) तपथी संसाररूपी पांजरांने जांगवानी 5. बाथी स्त्रीथी विरक्त थश्ने तेणे सुमति नामना गुरुनी पासे दीदा लीधी. // 5 // (अनुक्रमे) अग्यारे अंगोनो पारंगामी एवो ते धर्मदत्तमुनि तपपूर्वक पृथ्वीपर विहार करतोयको पोतानी (ज. न्ममि ) एवी वाराणसी नगरीमा गयो. // 23 // त्यां वंदनमाटे श्रावेला लोकोने उपदेश दे. तोथको ते मुनि श्रीजैनधर्मनुं एक बनवावु साम्राज्य विस्तारवा.लाग्यो. // 14 // घणा काळयी। P.P. Ac. Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust