________________ धम्मि- याऽकारी-युच्चकैस्तावरोदितां // 60 // तयोरथावबोधाय / शिदामेवमदान्मुनिः // युवयोर्न वयो माई धर्म-योग्यं मोहमथाईति // 61 // धनं सनिधनं प्रांते / वनिता जनितातयः // जोगा रोगास्पदं कूट-कोटीकटुकुटुंबकं // 6 // हंत किं तद्भवे येन / भवेदसुमतां धृतिः // उत्खातपातकोजेकमेकमेव हितं व्रतं // 63 // युग्मं // प्राप्य रत्नत्रयं पुत्रः / संयमश्रीसमान्वितः // किं दुरादहमायातो। न जातो नवतोर्मुदे // 64 // बोधितौ तौ ततस्तेन / तृणवत्त्यक्तसंपदौ / मुनेः पार्श्व ज. वो. // 27 // पनी स्वर जमर तथा व्यवस्थाविशेषथी तेने जळख्यावाद अरे पुत्र! तें या शुं कयु ! एम कही ते मोटेथी रडवा लाग्या. // 60 // पड़ी तेजने प्रतिबोधवामाटे मुनिए उपदेश याप्यो के हवे तमारी आ धर्मलायक नमर मोह करवामाटे योग्य नथी. // 61 // धन अंते विनश्वर , स्त्रीने दुःख यापनारी , जोगो रोगोना स्थानसरखा , तथा कुटुंब पण कोडोगमे कू. टोथी कमवू . // 6 // अरे! आ संसारमां एवी कर वस्तु बे ? के जेथी प्राणीनने धीरज म. ळे ! माटे पापोना उगलने नखेडनारं व्रत लेवू एज एक हितकारी जे. // 63 // हं तमारो या पुत्र के जे दूर देशथी त्रण रत्नो लेश्ने संयमलमीसहित आवेलो बुं, ते शुं तमोने हर्ष करना | . P.P.AC.Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust