________________ 134 धम्मि- तरा // 16 // करौष्टपसवा हास्य-पुष्पा स्तनफलान्विता // या वजीव कृता धात्रा-ऽनंगतापनि दे नृणां // 27 // हरिएमयानि सौजाग्य-जुषा यद्देहयष्टिना / / ऋषणान्यपि ऋष्यत्वं / निन्यिरे निजसंगमे // 20 / / अभ्यस्यान्यस्य सा नाट्य-कलाकोटिमुपागता // सनां नमीभुजो नेजे / झा पितुं सकलाः कलाः // 27 // नाट्यकौतूहलोत्ताल-मनसस्तत्र लदशः // ईयुः पौरा युवानश्च / ते. ऽपि सर्वे सधम्मिलाः // 30 // कलां परीदितुं स्वस्या / विज्ञप्तो नृपतिस्तया // परीदानिपुण कं. ना महासागरसरखा तेणीना शरीरमा युवान पुरुषोनी दृष्टिरूपी होडी तरतां बता पण बच्चे तेणीना स्तनरूपी खराबापर अथडावाथी किनारे पहोंची शकती नहोती. // 26 // हाथ बने होठरू. पी पल्लवोवाळी, हास्यरूपी पुष्पोवाळी तथा स्तनरूपी फलोवाळी एवी जेणीने विधात्राए पुरुषोना कामदेवरूपतापने नाश करनारी वेलमीसरखी बनावी हती. // 27 // जेणीना सौजाग्यवान श. रीरे पोताना संगथी ( उलटां ) सुवर्णना भाषणोने पण शोजाव्यां हतां // // अन्यास क. से करीने नृत्यकलानी टोंचे पहोंचेली ते वारांगना पोतानी सर्व कला देखामवामाटे राजसभामां | ग॥ 29 // नृत्यनुं कुतूहल जोवामाटे नत्सुक मनवान लाखोगमे नगरना लोको त्यां था. | P.P.AC.Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust