________________ सार्थ धम्मिः पुरःस्था ययं कुर्मः / कर्म कार्य त्वयापि तत् // मार्गे बहुजनकुले / चरतः का तव दतिः // 22 // | इति तैः प्रेरितः पूर्व / सर्व चक्रे स शंकितः // अनश्यत्तस्य शंकापि / काले वीते च पापतः / / // 23 // सुबुर्विद्यते दुःखं / सुखं च दृश्यते जनैः / अत्र स्तः सौधनिर्माण-जंगावेव निदर्शनं // 24 // श्तश्च निश्चितानंग-रंगवरिति नागरैः // वसंततिलकेत्यासीत् / पुरे तत्र पणांगना // | // 25 // लावण्याब्धौ यदंगे दृग्-द्रोणी यूनां तरंत्यपि / / पारं न प्राप वदोज-गिरावास्फालितांचोळा, स्त्री, नाटक, गीत, हास्य तथा कौतुक ए यौवनरूपी वृदानी फलश्रेणि जे. // 21 // माटे अगाडी रहीने अमो जे कार्य करीये ते तारे पण करवं, केमके जे मार्गे घणा माणसो चाले त्यां चालवामां तने शुं नुकशान ? // 12 // एवी रीते तेलए प्रेर्याथी प्रथम तो ते शंकासहित सघर्धा करवा लाग्यो, परंतु वखत जाते तेनी पापनी शंका पण दूर थश्. // 53 / / बुद्धिवान माण. सने सारे रस्ते चमाववामां जरा कष्ट पडे बे, परंतु तेने सारे रस्तेथी पाडवो सहेलो ने अहीं ए. क महेलने बनाववान दृष्टांत जाणी लेवू ॥श्या हवे ते नगरमां एक वसंतविलका नामनी वारांगना | रहेती हती, के जेणीने नगरना लोको कामदेवन। मिसरखी जाणता हता. // 25 // लावण्य P.P.AC.Gunratnasuri M.S. Jun Guo Aaradhak Trust