________________ 135 धम्मि- अनर्थदं जानानः / को धीमानंतकांतिकं // नयत्येतावतो जंतून् / नमंतून केखिकौतुकैः // 17 // माई एवं प्राक्तनसंस्कारा-नुभिरंत निरीक्ष्य तं // ते सर्व तुमुलोत्ताल-हस्तताला बाषिरे // 17 // वाक्प्रपंचममुं मुंच / वंचितः सर्वथासि रे // विमुग्धः साधुधूर्तस्त्व-मसत्कटपनयाऽनया // 15 // पृथ्व्यप्तेजोमरुभ्रूणां / जीवान् श्रद्दध्महे कथं // प्रत्यदादिप्रमाणाना-मगम्यान् व्योमपुष्पवत् // 20 // पुष्पोच्चयपयःक्रीडा-दोलास्त्रीनाट्यगीतयः // हास्यं कौतुकिता चेति / यौवनडोः फलावली // 1 // ष्ट फक्त संघटनधी पण एकेडिय जीवने सहन क पडे . // 16 // (माटे एवी रीते ) अनर्थदंडने जाणनारो कयो बुध्विान माणस एटला बधा निरपराधी प्राणीनने फक्त क्रीमाना कौतुकथी मारे? // 17 // एवीरीते तेने पूर्वना संस्कारो नचारतो जोश्ने ते सघळा कोलाहलपू. र्वक तालीन देश्ने बोली नठ्या के // 17 // अरे! या सघळी वात तुं नोडी दे, खरेखर तने मुग्धने यावी यावी जूठी कल्पनायी धूर्त साधुनए बिलकुल उगेलो . // 17 // वळी पृथ्वी. जल, अमि, वायु तथा वनस्पतिना जीवो के जे प्रत्यद श्रादिक प्रमाणोने अगोचर ने, तेजनी थाकाशपुष्पनीपेठे अमो केम श्रघा करीये ? // 20 // वळी पुष्पो एकगं करवां, जलक्रीडा, हीं. P.P.AC.GunratnasuriM.S. Jun Gun Aaradhak Trust