________________ धमिम खरसरोजास्यै-रुत्पश्या यत्र दीर्घिकाः // जमाशया अपि प्रीति-प्रदा गोपांगना श्च // 12 // त्व. सार्थ मत्रोचिनु पुष्पाणि / हंसलीलां जले जज // मित्रेष्विति ब्रुवाणेषु / धम्मिलेनात्यधीयत // 13 // श्रतो न वः स्वयं प्रज्ञा / न वा गीतार्थसंगतिः // यदेवं व्यक्तनिःशूकाः शृणुतागम जाषितं // 14 // जुर्जलं ज्वलनो वायु-स्तरवश्वेति पंचधा / / नवंत्येकेंद्रिया जीवा-स्ते ह्यसंख्या दृगध्वगाः // 15 // यऊराजर्जरो यूना / दृढमुष्ट्या हतोश्नुते // कष्टं संघटनेनापि / तस्मादेकेंदियोऽधिकं // 16 // वावडीन जलाशय ( जड पाशयवाळी ) बतां गोपीननीपेठे यानंद बापती हती. // 1 // ही धम्मिलने ते मित्रोए कह्यु के तुं यहीं पुष्पो एकगं कर? तथा जलमां हंसनीपेठे क्रीमा कर? त्यारे धम्मिले कडं के // 13 // अरे! आथी तो एम जणाय बे के तमोने स्वाभाविक अ. कलज नथी, अथवा तमोने गीतार्थोनो संग थयो नथी, के जेथी यावी रीते प्रगटपणे तमो नि दय थान गे, सिंघांतनुं वचन सांग्लो? // 14 // पृथ्वी, जल, अमि, वायु अने वनस्पति, प पांच प्रकारना एकेडिय जीवो बे, अने ते असंख्याता दृष्टिगोचर थाय ने. // 15 // वळी एक य| वान माणसे जोरथी मुक्को मारवायी अति वृक्ष माणस जे कष्ट गोगवे , तेयी पण अधिक क. P.P.AC.Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust