________________ धम्मि- रिमायानां / व्यक्तमुक्ताफलागमा // साधुशाला पुनः दूरे / जहुः सिंहगुहामिव // 7 // धम्मिलो मा मृगवन्मुग्धः / कृष्णसारैस्खिाग्रगैः // यत्र यत्र च नीतस्तै-स्तत्र तत्रानुगोऽगमत् // // निन्ये | सोऽन्येारुद्यानं / तैनष्टतपनातपं // यत्र सांपुमबन्ने / तमः क्रीडति निर्नयं // 10 // लतानांला. 130 | स्यलीलायां / गायना यत्र षट्पदाः // नाट्याचार्यत्वमातेने / मंदं मंदं स्फुरन्मरुन् // 11 // विक ळा आदिकोने तीर्थजमीनीपेठे खूब सेववा लाग्या. // 7 // अति कपटीनने (शियाळोने ) अ. गम्य तथा प्रकटरीते मोदफलना ( मुक्ताफलना). लाजवाळी सिंहगुफासरखी साधुननी धर्मशा. लाने तो तेनए दूर गेमी. // 7 // कृष्णसारो जेम हरिणने तेम अगामी चालनारा ते व्यनिचारी मित्रो ज्यां ज्यां ते मुग्ध धम्मिलने ले जता त्यां त्यां तेननी पाजळ जवा लाग्यो. // 5 // पनी एक दिवसे तेज नष्ट थयेल ने सूर्यनो ताप ज्यां एवा एक बगीचामां तेने ले गया, के जे बगीचो घाटां वृदोथी ब्वायेलो होवाथी त्यां अंधकार तो निर्णयपणे क्रीडा करी रह्योहतो. // 10 // वळी त्यां वेलडीनं नाचती हती, तथा जमरान गायन करी रह्या हता, तथा मंद मंद वातो वायु नाट्याचार्य- कार्य करतो हतो. // 11 // तेमज ज्यां विकखर कमलोरूपी मुखोथी चंचु जोनारी PP.AC.Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust