________________ धम्मि- चित् / पौरलोकानयाचत // 31 // सदसद्भावनेदझो-ऽस्मासु पदिषु हंसवत् / / एक एवायमस्तीति / माई | तै राझोऽदर्शि धम्मिलः // 32 // पौरचक्रे पुरश्चक्रे / तमेवाथ नरेश्वरः // बंद्यो ोककलोऽपींदः।। किं पुनः स कलानिधिः // 33 // धम्मिले सादिणि दोणी-लुजः सदसि सा दाणात् // कर्तुं रंजे. व जंजारे-रारेने नाट्यमद्तं // 34 // चक्षुश्चषकाचांतोऽपि / यत्र न त्रुटिलो रसः // पश्यंस्तव्या, तथा धम्मिलसहित ते सघन युवानीयान पण त्यां याव्या. // 30 // पजी पोतानी कला. नी परीक्षा करवामाटे तेणीए विनवेला राजाए नगरना लोकोपासे मागणी करी के तमारामांना कोश्क निपुण माणसे यानी परीदा करवी. // 31 // पदिनमां जेम हंस तेम सत्यासत्य नेदने जाणनारो घमारामां या एकज , एम कही तेनए धम्मिलने देखाड्यो. // 32 // त्यारे राजा ए पण नागरिकोना समूहमांथी तेनेज अगाडी कयो, केमके ज्यारे एक कलावाळो चंड पण न मवालायक बे, त्यारे कलाना नंडारसरखा ते धम्मिलनुं तो कहेवूज ? // 33 // हवे धम्मिल सादी होते ते इंद्रनी सन्नामां जेम रंना तेम राजानी सन्नामां तेणीए तुरत आश्चर्यकारक नत्य करखा मांडयु. // 34 // नेत्ररूपी प्यालाथी पीधा बतां पण जेनो रस खूट्यो नहि, एवं ते नृत्य P.P.AC. Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust