________________ सार्थ धम्मि- समाधिनाध्यासा-मास वासवपत्तनं ॥२शा अमित्रदमनस्ताते / जाते परजवावगे / बनार लीलया राज्य-नारं जंजारिविक्रमः / / 3 / / कृतज्ञः स्वप्रतिज्ञात-मसौ ध्यायन सदा हृदा // सुरेंडं सुहृदं ""| श्रेष्टि-पदवीं समलंगयत् // 24 // अनुत् प्रभुप्रसादेऽपि / नायं न्यायविवर्जितः॥ राजमानोऽप्यमए१ | र्यादो / यादोनायो भवेत् किमु // 25 // सुभद्रा गर्तृसंमान-मसीमानमुपेयुषी // कालं निनाय देवीव / धर्मकर्मपराङ्मुखी / / 26 // अथ तेऽचिंतयनंत-यंतराश्चैत्यवासिनः // अहो माया सभः पूर्वक मृत्यु पामी ते इंजना नगरमां गयो. // 22 // पनी इंडसरखां पराक्रमवाळो अमित्रदमन कुमार पण पोतानो पिता मृत्यु पाम्यावाद लीलापूर्वक राज्यजार धारण करवा लाग्यो. // 53 / / पजी हमेशां पोतानी प्रतिज्ञा हृदयमां विनारता एवा तेणे पोताना मित्र सुरेंऽदत्तने नगरशेउनी पदवी थापी. // 24 // एवी रीते राजानी कृपा बतां पण ते सुरेंद्रदत्त न्यायरहित थयो नहि. के. मके चंद्रना सन्मानवाळो एवो पण समुद्र शुं मर्यादारहित थाय ? // 25 // जरिना अत्यंत स. न्मानने प्राप्त थयेली सुनद्रा तो धर्मकार्य विसरी जश्ने देवीनीपेठे पोतानो समय निर्गमन करवा लागी. // 26 / / तेथी ते चैत्यवासी व्यंतरो मनमां विचारखा लाग्या के अहो! सुगड़ा केवी P.P.AC.Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trus!