________________ .. 104 धम्मिः // 3 // प्रास्तामपत्यं त्रैलोक्या-धिपत्यमपि दुर्घटं // न यतः प्रयतस्त्वं तं / धर्ममेव विधेहि चोः मा // // देवता पुर्बला यत्र / यत्र कुंग पराक्रमाः // मंत्रादिजिरसाध्यं यत् / तधर्मेणाशु साध्य ते // 6 // ये सुखानि समीहंते / नरा धर्मप्रमघराः // जमा बीजमनूपानाः। फलाय स्पृहयंति ते // 7 // व्यवसायं विना नार्थो / न श्रुनार्यो धियं विना / / न वारिदं विना वृष्टि-न पुष्टि जने विना || G || योधं विना न संग्रामो / न ग्रामो मानुषं विना / / न सद्भावं विना सख्यं ।न सौ. ने नाश करनारी होय. // 3 // संतान तो एक बाजु रह्यां, परंतु जेथी त्रणे लोकनु स्वामीपाएं मेलवq पण अशक्य नयी एवो धर्म तुं प्रयत्नपूर्वक कर? // 01 जे कार्यमां देवोर्नु पण चा. ली शक्तुं नथी, ज्यां उद्यम पण निष्फल जाय , तया जे मंत्र श्रादिकथी पण साधी शकातं नथी ते ( सघर्बु ) धर्मयी जलदी. साधी शकाय . // 76 / / जे माणसो धर्ममां प्रमाद। रहीने सुखोने इलेने ते मर्यो बीज वाव्याविना फलनी श्वा राखे . // 7 // व्यापारविना धन मलतुं नथी, बुधिविना शास्त्रोनो अर्थ मळतो नथी, बादळांविना वरसाद थतो नयी, तथा नोजन / विना पुष्टि थती नथी, // 7 // सुजटविना युछ यतुं नथी, मनुष्यविना गाम वसतुं नथी तथा| P.P.AC.Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust