________________ धम्मि- मा जुः कदाग्रही वत्स / विलंबः खलु कार्यहा / / 70 // संबंधी सागरः कन्या / सुभद्रा स्वजनाथसार्थ म। // पुनरेतत्त्रयीयोगो / मया वत्स क लप्स्यते / / 71 // सुरेोऽवम् वृथा स्यान्मे / नोक्तं किं चिंतयानया // यः पाणिमसृजत्पाणि-गृहीतीमपि स ध्रुवं // 12 // यत्तलजल्पनं यत्त-दाणं यत्तदासनं // बाल एव प्रकुर्वाणो / विनाति न पुनर्युवा // 13 // बलात्कारेण वीवाहः / कारितो जशुक्रायतिः // इति ध्यात्वा न्यवत्तेत / स्वयमातनरास्ततः // 14 // विवाहविघ्नं तेऽन्येय / साग. तुं कदाग्रही न था, केमके (यावां कार्यमां) विलंब करवाथी कार्य बगडी जाय . // 70 // केमके हे वत्स ! सागरशेग्जेवो संबंधी, सुभाजेवी कन्या तथा आवा स्वजनो, ए त्रणेनो योग फरीने हुं क्या मेळवीश ? // 71 // त्यारे सुरेंडदत्ते कहूं के हे पिताजी ! मारुं वचन वृथा थशे न. हिवळी ग्राम चिंता करवाथी शुं थशे ? केमके जेणे मारो हाथ सरज्यो , ते खरेखर हाथने ग्रहण करनारी पण सरजशे. // 12 // जे ते बोलवू, जे ते खावु तथा ज्यां त्यां बेसवं, ए बालकने शोने बे, परंतु युवानने शोने नहि. // 13 // हवे बलात्कारे करावेलो विवाह परिणामे | सारो निवम्तो नथी, एम विचारी ते प्राप्त पुरुषो पोतानी मेळेज त्यांथी पाग गया. // 4 // P.P Ac. Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust