________________ धम्मि- यामहः // 61 // अनभ्यासात् कलानाशे / यद्योषिदोषपोषण // तत्कोलखादिते क्षेत्रे / महिः / मां पीसुतकुट्टनं // 6 // कचित्कलाप्रकर्षोऽपि / सुकलत्राद्भवेन्नृणां // पश्य पूर्णिमया चंद्रः / किं न | पूर्णकलः कृतः // 63 // नारी मृदुः सुखं निंद्या / निपुणैर्न पुनः पुमान् // हिमो दहति ताकी / 110 यथा न तु तथा वटं // 64 // एवं निर्वचनीकृत्य / सुरेडो निजनंदनं ॥न्यानुद्भिनतारुण्य-क. नथी. / / 60 // वळी उत्पन्न थयेली युवावस्थारूपी वनमां फरनारा पुत्रो स्त्रीरूपी बंधनस्तंजविना हायीनीपेठे न्यायरूपी वृदने जखमी नाखनारा थाय . // 61 // अभ्यासविना थता कलाना | नाशमाटे जे स्त्रीना दोषो बोलवा, ते तो शियाोए क्षेत्रनुं भदाण करवायी (तेने बदले ) पा. डाने मारवासमान . // 6 // वळी कोश्क वखते तो उत्तम स्त्रीथी पुरुषोनी कलामां वृद्धि पण थाय बे, जुन के पूर्णिमाए शुं चंडने संपूर्ण कलावाळो नथी कर्यो ? // 63 // स्त्री जातेज को. मलने, तेथी पंडितो तेणीनी सुखे निंदा करी शके बे, परंतु पुरुषनी करता नथी, केमके हिम जेम रीगणीने बाळी नाखे ने तेम वडने बाळी शकतो नथी. // 64 // एवी रीते पोताना पुत्रने बोलतो बंध करीने सुरेंद्रदत्ते तुरत केटलाक शाहुकारोपासे खोलती जुवानीवाळी (तेजनी) क- | PEAC.Guiiranasuri M.S. Jun Gun Aaradhak. Trust