________________ धम्मि-| पंजरे स्थितः // काकायसे किमद्याथ / श्लोकमेकं पपाठ सः // 27 // अनंता गृहेचिंतेयं / तोय. मा राशिसमा नृप / / यदेकया स्त्रिया नष्टा / गाथापंचशती मम // 17 // . एवं तात कलानंग-मंगनान्यो विदन्नपि // पाणिग्रहणपर्याये / पाशे पत्स्याम्यहं कथं // | // 55 // सुरेंडोऽथालपत्पित्रो-रेवं दुर्वाक्यपशुभिः // श्राशालतां चिरोद्द्वतां / वत्स नोबेत्तुमहसि // 60 // वध्वालानं विना जात–तारुण्यारण्यचारिणः / / गजा श्व-नवंत्येवां-गजा न्या. के अरे कवीश्वर ! था तने शुं थ गयु ? // 26 // तुं तो ( हमणासुधि ) शीघकवि (शुकरूप) थइने हमेशां मारा चित्तरूपी पांजरामा रह्यो हतो, त्यारे बाजे थाम काकसरखो केम जणाय ? त्यारे ते कवि एक श्लोक बोल्यो के, // 17 // हे राजन् ! घरसंबंधि या अनंती चिंता महासागरसमान , केमके फक्त एक स्त्री परणवाथी मारी पांचसो गाथा नाश पामी . // 27 // एवी रीते हे पिताजी स्त्रीनथी थतो कलानो विनाश जाणता बतां विवाह नामना पाश. मां हं शामाटे पहुं? // 55 // त्यारे सुरेंद्रदत्ते कडं के हे वत्स! एवी रीतनां दुर्वचनोरूपी कक्षा. डीनथी घणा काळथी जगेली मातापितानी आशारूप। वेलडीने उखेमी नाखवी ए तने योग्य Jun Gun Aaradhak Trust PP.AC Gunratnasuri M.S.