________________ धम्मि-- किंचिदन्यत्क्षुधं विना // 4 // ब्राह्मण्यं ग्राहितः पित्रा / सोमदेवोऽस्य नंदनः // श्रास्पदं रूपरे / माम खायाः / सोमशर्मा च नंदिनी // 4 // बाल्य एव तयोर्माता / जाता प्रेताधिपातिथिः // प्रायो | ददाति दारिद्यं / सर्वासामापदां पदं // 45 // अस्या स्थाने न किं मामे-वाहरन्महिषध्वजः // . दुःखादिति वदन् विप्रः / कथंचित्ताववर्धयत् // 50 // किं भजामि वनं यामि / दुरं खानि खना| मि वा // एवं धनाशयानपान / विकल्पान विततान सः // 11 // दारुजारमुपानेतु-मनपाकाय जा नष्ट थयेलीबे, एवो एक शिव नामें ब्राह्मण वसतो हतो. // 46 // एक दारिद्यशिवाय ते कोश्ने पण वल्लग नहोतो, अने तेनी मालिकामां पण खशिवाय बीजं कई पण नहोतं. // | // 4 // पिताए जनो थापेलो तेनो सोमदेव नामे पुत्र हतो, तथा अत्यंत रूपवाळी सोमश र्मा नामनी तेनी पुत्री हती. // 4 // बाल्यावस्थामांज तेननी माता मृत्यु पामी हती, कारणके प्रायें करीने दरिद्रषाणुं सर्व आपदा थापे . // 4 // अरे! या मारी स्त्रीने बदले यम मने का न ले गयो! एवी रीते दुःखथी बबडता ते ब्राह्मणे केटलीक महेनते ते बन्ने बाळकोने महोटा .| कर्या. // 10 // शु 1 वनमां जालं ? के दूर जश्क्यांय खाण खोई? एवी रीते धननी बाशाथी ते | P.P.AC.GunratnasuriM.S. Jun Gun Aaradhak Trust