________________ 112 / पीमनतो धम्मि- दमा अपि // त्याजिता गुरुवाग्वल्गा-जियोगात्तेन चापलं // 3 // सुरेंडः प्राप्ततारुण्य-मयोबाह मालयितुं सुतं / उत्तमा कतमा कन्या / योग्यास्येति व्यचारयत् // 24 // करपीमनतो विन्यत् / करं | पीमनतो यथा // धम्मिलो जनकस्यांही। प्रणम्येति व्यजझिपत् // 25 // विधास्ये न पितर्दारकर्म शर्मविदारकं // शास्त्रार्थामृतृप्तस्य / प्रयांतु दिवसा मम // 16 // नार्याभृयादयः पाल्या / वा श्री संततिश्च मे // इति चिंता कृतोदाह-नरस्य सुखशोषिणी // 27 // कलाकौशलकाकर्या. / / 3 / / हवे युवावस्था पामेला पोताना पुत्रने परणाववाने तेनामाटे कर कन्या योग्य ने एम. सुरेंद्रदत्तशेठे विचार्य. // 24 // जेम हाथने पीलवाथी डरे तेम विवाहयी बीतो धम्मिल पि. ताने चरणे नमीने विनंति करवा लाग्यो के, // 15 // हे पिताजी ! सुखने नाश करनारो विवाह हं करीश नहि, शास्त्रार्थरूपी अमृतथी थयेली तृप्तिपूर्वक मारा दिवसो व्यतीत थवा दो. // 16 // जे पुरुष विवाह करे ने तेने सुखनो नाश करनारी एवी चिंता थाय बे के मारे स्त्री चाकरयादिक पाळवा पडशे, अने लक्ष्मी तथा संतति वधारवी पमशे. // 27 // वळ) स्त्रीना संगयी कला | नी कुशलता दया तथा कविपणावादिक गुणोनी श्रेणि खरेखर नाश पामे , तेमाटे अहीं ए. | P.P.AC.Gunratnasuri M.S. Sun Gun Aaradhak. Trust