________________ धम्मि- इति तं धर्मबोधाय / श्रेष्टी साध्वंतिकेऽमुचत् // 17 // स साधुन्यः श्रुतं धर्म्य-मधीयानो नवं न / व // सूदमेष्वपि विचारेषु / विद्वान साधुरिवागवत // 15 // जीवाऽजीवादिकास्तस्य / पदार्या ह. दये नव / / सप्रपंचाः स्फुरतिस्म / रंगनमौ नटा व // 20 // बाल्यसीमामथोवंध्य / स ययौ यौवनं वनं // न तु प्राप स्मरख्याध-शरवातशव्यतां // 21 // अस्तावे श्रुतपाथोधौ / निलीनं मी. नवन्मनः // अशकध्वंसकः काम-बकस्तस्य न धर्षितुं // 25 // पंचेंद्रियहया लोलाः / प्रकृत्या पु. धार्मिक ज्ञान मेलववामाटे तेने साधुपासे मोकल्यो. // 17 / / त्यां ते साधुळपासेयी नवां नवां धर्मशास्त्र भणीने साधुनीपेठे सुक्ष्म विचारोमां पण प्रवीण थयो. // 17 // रंग मिपर जेम नटो तेम तेना हृदयमां जीव अजीवधादिक नव तत्वो नेदसहित स्फुरायमान थया. // 20 // पनी बाल्यावस्था जळगीने ते यौवनरूपी वनमां श्राव्यो, परंतु त्यां कामदेवरूपी पाराधिना बाणोना स. महथी विधायो नहि. // 21 // शास्त्ररूपी अगाध समुद्रमा मत्स्यनीपेठे लीन थयेला तेना मनने कामदेवरूपी हिंसक बगलो पकडवाने शक्तिवान थयो नहि. // 25 // स्वनावयीज भर्दम भने चपल एवा पण पंचेंजियरूपी घोडान गुरुना वचनरूपी लगामना प्रयोगथी तेणे चपलतारहित Jun Gun Aaradhak Trust P.P.AC. Gunratnasuri M.S.