________________ धम्मि| सा संजनितपुरेव / तत्र तेने महोत्सवं // एए / अथारुह्य रथं जा / प्रहितं गृहमागता / बु. लुजे हृष्टहृदया / समं परिजनेन सा // 500 // तदादि विधिना सूत्रो-क्तेन निजिन जिनं / न पवैणवमानर्च / श्चेष्टी सूविचः स्मरन् // 1 // नित्यं गुरुपदांजोज-रजः संस्पर्य पावनं // सुनगं 107 भावुको चाल-भृगस्तस्याऽजवत्तरां // // सदापदापगाममान / दीनानुघर्तुमंजसा // सोऽसी. यनिजां लदमी-मंगिनीमंगीनीमिव // 3 // स च पंचनमस्कार-स्मृतिपीयूषधारया // सदा सदारः वळी सघळा चैत्यवासी व्यंतरोने पण खमावीने जाणे पुत्रने जन्म थाप्यो होय नहि तेम त्यां ते. जीए महोत्सव को. // एए | पनी ते जारे मोकलेला रथपर चडीने घेर श्रावी, तया खश मनथी परिवारसाथे जोजन करवा लागी. // 100 // वळी त्यारथी मामीने शेठ पण पाचा र्यनां वचनने याद करताथका शास्त्रमा कहेली विधिमुजब कषायरहित जिननी वाजिननादपूर्वक पूजा करखा लाग्या. // 1 // हमेशां गुरुचरणरूपी कमलनी पवित्र अने मनोहर रजनो स्पर्श क. रीने ते जाविक शेठ तेप्रति पोताना ललाटरूपी जमरावाळो थयो. // 2 // वळी तेणे हमेशां था. पदारूपी नदीमां मुबेला एवा दीन मनुष्योनो जलदीथी नछार करवामाटे पोतानी लक्ष्मीने दे. P.P.AC.Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust