________________ 106 धम्मि वस्या-ऽनंतसंसारकृयथा // ए // पततः पर्वतस्याध-स्तैरधारि स्वमस्तकं // देवदाये विपर्यासो।। | यैरकारि प्रमादिनिः // 55 // यां जिनस्य प्रतिझाया-ऽवझामझानतो व्यथां // तस्या वंध्यत्वमे तन्मे / विषवल्लेखिांकुरः // 6 // विधाय जक्तिं चैत्यस्य / मया गोक्तव्यमद्य तत् // इति ध्यात्वा सहालीजिः / सा ययौ जिनमंदिरं / / 57 // तत्र मुग्धमुखी.बाला / पितृनिव जिनेश्वरान // स्व मागः दमयामास / पूजयमास चाहता // 9 // दमयित्वाखिला श्चैत्य-वासिनो व्यंतरानपि / वनुं करज जेवू अनंत संसार करनारं थाय , तेवू बोलता एवा पण माणसोनुं करज मने न. यानक लागतुं नथी. / / ए // जे प्रमादी माणसोए देवना करजनो विपर्यास करेलो , तेनए पडता पर्वतनी नीचे पोतानुं मस्तक धरखासरखं कयु . // 55 // प्रतिझा लेश्ने पण में अझा. नथी जिनेश्वरप्रभुनी जे अवज्ञा करेली , तेथी फेरी वेलडीना अंकुरासरखं था वंध्यापणुं मने प्राप्त थयुं . // 56 // माटे बाजे तो मारे जिनप्रतिमानी नक्ति कर्याबादज नोजन करवू , ए. म विचारीने ते सखीनसहित जिनमंदिरे गश्. / / ए // त्यां नष्क बालिका जेम मावापपासे तेम ते जिनेश्वरपासे पोतानो अपराध खमावीने आदरपूर्वक तेमनी पूजा करवा लागी. // एGI Jun Gun Aaradhak Trust P.P.AC.Gunratnasuri M.S.