________________ धम्मि- अन्यदा स्वसरिद्दीची—समे संवीय वाससी // पुण्योः पक्किमफलैः / शोजितः स्वर्णपणैः // सार्थ // 11 // वक्रवजावया शश्व-दध्यापित श्व श्रिया // कुर्वन् वक्रक्रमन्यातं / स चचार चतुष्पथे // | // 12 // युग्मं // तं गंधमृगवदीदय / सारसौगंध्यबंधुरं / कः प्राणायामकारीव / नोर्ध्वश्वासो ज. 46 | नोऽजनि // 13 // केचिदू चुरहो यस्य / नाग्यं सौभाग्यशालिनः // जन्मना यन्मनुष्योऽपि जा ति देव व श्रिया // 14 // अपरे स्माहुरेतस्य खबु कृत्वाऽप्रशंसनं // यः पित्रा स्वीकृतां लक्ष्मी वस्त्रो पहेरीने तथा पुण्यरूपी वृतानां पाकेलां फलसरखां वर्णनां आऋषणोथी शोनायुक्त थश्ने // 11 // हमेशां वक्रस्वगाववाळी लक्ष्मीए जाणे मणावेलो होय नहि तेम वांका वांका पगलां मुकतोथको ते चहुटामां चालवा लाग्यो. // 12 // कस्तूरीयां हरिणनीपेठे उत्तम सुगंधिथी मनो. हर बनेला एवा ते ने जोश्ने जाणे प्राणायाम करतो होय नहि तेम कयो माणस ऊर्ध्वश्वास वाळो न थयो? // 13 // केटलाको कहेवा लाग्या के अहो! या सौभाग्यवान धर्मदत्तनुं केवं (जमर्दु ) नशीब ! के जे जन्मथी मनुष्य बतां पण लक्ष्मीथी देवसरखो शोने . // 14 // | केटलाको तेनी निंदा करीने कहेवा लाग्या के अरे! या तो पिताए स्वीकारेली (पोतानी)। P.P.AC.Gunratnasuri M.S Jun Gun Aaradhak Trust