________________ धम्मि-| षणं दूषणं वस्त्रं / शस्त्रं स्वजवनं वनं // कामार्त्तया तया पुष्प-माला ज्वाला श्वेदिताः // 7 // मार्ग सौकुमार्यमहो तस्या-यत्पौष्पैरपि सायकैः / / अनंगेनाहता भेजे / दशां जीवितनाशिनी // 7 // ग्रंथ तस्या वयस्याभिः / सुरेंद्रोपयमस्पृहां / / बोधितः सागरोऽहृष्य-द्योग्यजामातृलानतः // 5 // 1 | प्रेषीचाप्तानरांस्तस्मै / पुत्री दातुं तदोकसि // याचतां ददतां वापि / कन्यां किंचिन्न लाघवं / / 10 // | समुद्रदत्तं समुदः / प्रजजटपुरुपेत्य ते // तवोपयबतां सूनुः / सागरस्यांगजामिति // 1 // सुरेंद्रो| ना भुवनने वनतरीके तथा पुष्पमालाने अमिनी ज्वालातरीके जोवा लागी. / / 77 // अहो! ते. णीनुं सुकुमालपणुं तो जुन ! के जे कामदेववडे करीने पुष्पनां बाणोथी हणातीथकी पण प्राणहारक दशाने प्राप्त थर. // 7 // हवे सखीनए सुरेऽदत्तने परणवानी तेणीनी श्वा जणाव्या. थी सागरश्रेष्टी पण लायक जमाश्नी प्राप्तिथी खुशी थयो. // 6 // पजी तेने पोतानी पुत्री था. पवामाटे तेणे. पोताना मान्य पुरुषोने तेने घेर मोकल्या, केमके कन्या मागवामां अथवा देवामां कं पण हलकाश् यती नथी. // 50 // तेन समुद्रदत्तपासे भावीने हर्षसहित कहेवा लाग्या के तभारा पुत्रने सागरश्रेष्टिनी कन्यासाथे परणावो? // 51 // आ सुरेंद्रदत्त महातेजस्वी निर्मल त. P.P.AC. Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust