________________ धम्मि- कष्टं स्त्रीजन्म सर्वदा // तत्रापि मम वंध्यात्वं / दग्धोर्ध्व स्फोटकायते / / 37 // यथा सरो विना / मानीरं / यथा वीरं विरूथिनी // प्रासादश्च विना. केतुं / विना हेतुं यथा वचः // 30 // यथा नृपो विना न्यायं / विना चायं यथा व्ययः // चर्विना यथैवास्यं / लास्यं तूर्य विना यथा // 35 // ए। यथा वदो विना हारं / सदाचारं विना गुरुः / / तथा न मे गृह चित्ता-नंदनं नंदनं विना // 40 // न मुदे मम देव्योऽपि / या नित्यमनपत्यकाः // धन्यानां धुरि मन्येऽहं / कृमिलाः कुर्कुटीरपि // माटे हे विधि! तारी ते चेष्टाने धिक्कार बे. // 36 // बीकणपणायी तथा शंकाशीलपणाथी स्त्री. नो अवतार हमेशां दुःखदाश् , तेमां पण मने जे वंध्यापणुं प्राप्त थयुं बे ते दाझ्यापर फोडलाजेवू थयु . // 37 // जेम जलविना सरोवर, जेम सुभटविना सेना, ध्वजाविना देवमंदिर, कारणविनानुं बोलवू, // 30 // न्यायविना राजा, भावकविना खरच, चक्षुविना मुख, वाजित्रविना ना. टक, // 3 // हारविना वदाःस्थल, तथा सदाचारविना जेम गुरु तेम चित्तने आनंद करनारा एवा पुत्रविना मारुं घर शोलतुं नथी. // 40 // जेन हमेशां संतानरहित ने एवी देवीज पण मने हर्षदायक थती नथी, परंतु घणा संतानवाळी एवी कुकमीनने पण हुँ यति धन्य मानें बं. // 1 // PP.AC.Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust