________________ ___ सार्थ धम्मि-| के मनःप्रियं मुक्त्वा / बालकेलिकुतूहलं // 31 // निशावसाने सान्येा-हदारमुपेयुषी // प्रा. / .. सामवस्करं शोधुं / कांचन स्त्रियमैदत // 33 // स्कंधस्थं दधतीं बाल-मेकमंगुलिगं परं / वि. | व्रतीमितरं कुदौ / लतां सुफलितामिव / / 34 // युग्मं // तस्या व्यापारवंध्याया। इति चिंता तदीदाणात् // निरौषधाया अदीण / श्व व्याधिरवर्डत // 35 // तनया यस्य यांसः / स स्यात प्रायेण निर्धनः // धनं यस्य न तस्यामी। विग्विधे तव चेष्टितं / / 36 // जी वाकनीयत्वात् / / कौतुक शिवाय तेनने घेर ते वस्तु नहोती के जे दुनियामां पण नहोती. // 32 // एक दिवसे | परोढीये ज्यारे ते घरना बारणापासे बेठी हती त्यारे त्यां (शेरीमां) कचरो साफ करखामाटे श्रावेली कोइएक स्त्रीने तेणीए जो. // 33 // तेणीए पोताना एक बाळकने खने चडायो ह. तो, बाजाने बांगलीए वळगाड्यो हतो, तथा त्रीजाने काखमां तेड्यो हतो, एवी रीते फळेली लं. तासरखी ते स्त्रीने तेणीए जो. // 34 // औषधविनानी स्त्रीनों नहि नष्ट थयेलो रोग जेम वृ. पामे, तेम व्यापारविनानी एवी सुजडाने तेणीने जोवाथी यावी रीते चिंता जत्पन्न थइ // // 35 // जेने घणा पुत्रो होय ते पायें निर्धन होय, अने जेने धन होय तेने पुत्रो न होय. P.P.AC.Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust