________________ सार्थ। धम्मि-| वंध्यः किं ते परिबदः / / 51 // यन्निदाघोदधिप्रायं / प्रागनतारवैः // तज्जातमधुना मौन-। | व्रतधारीव धाम ते // 55 // योग्योऽस्मि मां स्वदुःखोना-मुक्त्वा कुरु विनागिनें / युज्यते ह्येक | | चित्तानां / न नेदः सुखदुःखयोः // 23 // अथ कळालकालाश्रु-जलमार्जनतो निजं // वासो ए वितन्वती नीली-रक्तं व्यक्तं जगाद सा // 14 // दुःखं दयित मा प्रादीः / स्वकार्याण्येव साधय | // फुःखं स नाम सहतां / यः पापं प्राग्नवेऽकरोत् // 55 // यदशक्यप्रतीकारं / देवैः किमुत मा. | . // 50 // वळी कर्मने उपालंज आपवापूर्वक पोताना मस्तकने धुणावतो एवो तारो या परि वार यतिनीपेठे घरना कामकाजमां केम शून्य थयेलो ? // 51 // जे तारं घर पूर्व माणसोना कोलाहलथी जनाळाना समुद्रसरखं गाजी रह्यं हतुं ते बाजे मौनव्रत धरनारनीपेठे केम सूनुं थ. येवं? // 55 // हं पण योग्य बु माटे तारुं दुःख कहीने मने तेनो नागीदार कर ? केमके एकमनवानने सुखदुःखनो नेद होवो जोश्ये नहि. // 53 // हवे काजळवाळां श्याम सुनने युज्वाथी पोतानी साडीने काबरचीतरी बनावती एवी ते सुभद्रा प्रकटरीते बोली के, // 54 // हे स्वामी! आप मने दुःखनी चात पूगे नहि, थाप तो पोतार्नु कार्यज करो? दुःख तो तेजस PP.AC.Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust