________________ धम्मि| नवैः // श्रोतुर्वृथा व्यथाकारि / तद्दुःख किं प्रकाश्यते / / 56 // पुनरत्याग्रहात् पृष्टा / सा पत्युर- / - सार्थ नपत्यतां // कथंचित् कथयामास / बीज दुःखमहीरुहः // 57 // आवामेकाकिनावेव / परिवारे महत्यपि // दृक्पाटवेऽपि जात्यंधा-वेव देव सुतं विना // 27 // अपुत्रस्य शुजालोका / न संती| ति श्रुतेर्वचः // तत्ते पुत्रमुखालोकं / विना लोकवयं हतं // 27 // विक्राम्यसि विपुत्रस्त्वं / यामु. हन कर जोश्ये के जेणे पूर्वनवमां पाप करे होय. // 55 // जे दुःखनो उपाय देवो पण करी शके तेम नथी त्यारे माणसोनु ते शुं कहेवू? माटे एवी रीतनुं सांजळनारने फोकट दुःख करनारं वचन शामाटे प्रकाशवु जोश्ये ? // 56 // सारे फरीने अति आग्रहथी पूवाथी केटलीक महेनते तेणीए (पोताना) दुःखरूपी वृदाना बीजसरखं ( पोतार्नु ) धनपत्यपणुं नरिने कही बताव्यु. // 27 // महोटो परिवार बतां पण आपण बन्ने पुत्र विना एकाकीज गये, अने ते. थी यांखो जतां पण जन्मांधज जीये. // 27 // पुत्ररहित मनुष्यनो परलोक कल्याणकारी थतो नथी एम श्रुतिनुं वचन , माटे (हे स्वामी! ) पुत्रनुं मुख जोयाविना थापना बन्ने लोको नष्ट थयेला जाणवा. // 25 // वळी हे स्वामी ! पुत्ररहित एवा श्राप जे लक्ष्मीने उपार्जन करवामाटे P.P. Ac. Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak. Trust