________________ धम्मि| त्वासौ तया श्लोकः / स्वसखीभ्यः समर्पितः // हर्षवीची विहस्तानि-स्तानिस्तजानकाय च // 0 // / सार्थ | हस्ताउस्तेन संचारी / तनयः श्रीपतेखि // अयत्नं स समुषस्य / दाग ययौ कर्णगोचरं / / 71 // | पितुः पार्श्वे निषलेन / सुरेंजेण प्रवाचितः // श्लोको लोकोत्तरानंद-वारिधेश्चंद्रतां दधौ / / प्रशा 2 दध्यौ सामुद्री बालाया। अप्यस्याः कीदृशी मतिः // वयोवृधा अपि यया / मूर्धानं धूनिता न के // 73 // किंचिलोचनमस्त्यस्या / नूनं नेत्रदयाधिकं // येनेतरैईरालोका-नाने निरीक्षते थी उत्तम लान , तथा शील ए अविनश्वर रूप . / / 15 / / पनी ते श्लोक लखीने तेणीए पोतानी सखीनने श्राप्यो, तथा हर्षना मोजांनथी प्रेरायेली एवी तेनए ते श्लोक तेणीना पिताने याप्यो. // 70 // एवी रीते धनवानना पुत्रनीपेठे एकना हाथमांथी बीजाना हायमा जतो एवो ते श्लोक प्रयत्नविनाज समुद्रदत्तशेठने काने गयो. // 1 // त्यारे पितापासे बेठेला सुरें ऽदत्ते पण वांचेलो एवो ते श्लोक तेना अनुपम आनंदरूपी समुद्रप्रते चंद्रपणाने धारण करवा लाग्यो. // 7 // हवे ते सुरेंद्रदत्त विचारखा लाग्यो के अहो! था बालिकानी पण केवी बुद्धि ने! के जेथी कया वृछने पण पोतानुं मस्तक नथी धुणावq पमथु! // 73 // खरेखर तेणीनी / * Jun Gun Aaradhak Trust P.P.AC.Gunratnasuri M.S.