________________ धम्भि-| रुक्मराशिम तौ तत्र / निरीय मुमुदेतरां // 45 // पुण्यैः प्रकाशितः पुत्र-स्यैवायमिति वार्त्तयन् / // स्वर्णातरेकं तत्रासा-वत्रासं मणिमैदत // 46 // कोऽयं किमनुजावो वा / मणिरियात्तसंशयः | // तत्र पत्रमिति श्लोक-सुजगं लब्धवानसौ // 4 // एतत्संस्पर्शपूतेन / परिपीतेन पाथसा // | पुमान पशूपमोऽपि स्या-विद्याधरितवाक्पतिः // 4 // महिमानममुं मत्वा / मणेः श्रेष्टी व्यनावयत् // अहो निरवधि ग्यो-दधिर्वालस्य दृश्यतां // ४णा श्रीकारण निधिरसौ / धीकारणमयं म. तेम शेठे ते निधान खोलाव्यु // 44 // दारिद्यरूपी कष्टने बाळवाने दावानलनी ज्याला संरखा तेमां रहेला सुवर्णना समूहने जोश्ने ते शेठ घणो खुशी थयो // 45 // या निधान पुत्रना पुण्यथीज प्रगट थयेलो ने, एम वात करतां थकां तेणे ते निधाननी अंदर रहेला एक मनोहर म. णीने जोयो. // 46 // या मणि कर जातनो अने शु प्रनाववाळो हशे? एवी रीते शंकित थयेला एवा तेने त्यां ावी रीतना श्लोकथी मंडित थयेलो एक पत्र मल्यो // 4 // था मणिना स्पर्शथी पवित्र थयेवू पाणी पीवाथी पशु सरखो पुरुष पण विद्वान थश्ने बृहस्पतिने पण जीतनारोथाय // 4 // ते मणिर्नु यावं माहात्म्य जाणीने ते श्रेष्टीए विवायु के बहो! या बाल. P.P.AC.Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust