________________ धम्मि- तिं / व्यधादवितथा तथा // शरदीव सरः प्राप / प्रसत्तिं योगिराद यथा // 17 ॥ानिन्ये माहि. पुढं / सुस्त्रातः स तदाझ्या // शौचवादो जिया नश्य-त्युबिते लोभरदसि // 27 // स्वयं | कुस्तपस्वीव / रसत्यागं रसाशया // स चिदालब्धतैलेन / पुर्व चिरमभावयत् // 55 // पागल - 165 / वत्स श्रीवत्स-मिव श्रीमचिरोमणि // यथा मंछ करोमि त्वा-मिति वर्षन वचोऽमृतं // 60 // पु. मी तो एक बाजु रही, परंतु सर्व सिधिन स्वयंवरानीपेठे मारीपासे यावशे. // 26 // पड़ी ते ब्राह्मण ते योगीराजनी हमेशां एवी तो खरा दिलथी चक्ति करवा लाग्यो के शरद ऋतुमां जेम तळाव तेम ते योगीराज पण खुश थर गयो. // 27 // पनी ते योगीनी आझायी स्नान करीने पाडान पुंगडं ले पायो, केमके लोगरूपी रादास ज्यारे नगो थाय त्यारे पवित्रपणानी वात तो जयथी नाशीज जाय . // 50 // वळी पोते सिक रसनी श्राशायी तपस्वीनी पेठे सर्व रसनो त्याग करीने जीख मागी मेळवेलां तेलथी ते पाडानुं पुंबहुं हमेशां भींजाववा लाग्यो. // 27 // हे वत्स! हवे तुं चाल के जेथी तने विष्णुनीपेठे जलदी श्रीमंतोनो शिरोमणि बनावं, एवीरीते वचनामृतने वरसतोयको // 60 // तथा हाथमा रहेलो पुस्तकथी देखाडेल रे सघळी विधि जेणे P.P.AC.Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak. Trust