________________ . धम्मि- श्रेष्टी तत्रागते राशि। पौरपूरांतरागतं // स्वं मूर्तमिव सत्कर्मा-दादीहररुचिं विजं // 33 // त। साई तः प्रविततस्फूर्ति-रसौ तारस्वरं जगौ // गंगदत्त गृहाण त्वं / वस्तु यद्रोचते तव // 34 // सोऽ. पि चंचलदृक्पश्यं-स्तस्य गेहमितस्ततः / / तां चित्तचौरिकां कामा-कुलो नालोकन कचित् // 35 / / | तस्यात्याकुलचित्तस्य / स्वं झापयितुमातनोत् // मालोपरि गता कासं / भृशं भुक्तगुमेव सा // 36 // तां मत्वा चंडशालास्था-मवतारयितुं विः // पाणिदयेन जग्राह / निःश्रेणी निरपत्रपः // 31 // णे पोते बहेरो होय नहि तेम धर्मदत्ते कई दरकार करी नहि. // 32 // हवे राजा ज्यारे त्यां थाव्यो त्यारे नगरना लोकोना समूहनी अंदर पोताना मूर्तिवंत शुज कर्मसरखा ते वररुचि ब्राह्मणने पण श्रावेलो शेठे जोयो. // 33 // अने तेथी हिम्मत लावीने तेणे मोटे स्वरे कडं के, हे गंगदत्त! जे वस्तु तने गमे ते तुं लेश ले ? // 34 // त्यारे चपल दृष्टिवाने ते कामातुर गं. गदत्त आम तेम तेनुं घर जोवा लाग्यो, परंतु पोताना चित्तने चोरनारी ते सुरूपाने तेणे क्यांय पण जो नहि. // 35 // एवी रीते व्याकुल चित्तवान ते गंगदत्तने पोतानुं स्थान जणाववामाटे मजलापर रहेली सुरूपा जाणे, खूब गोळ खाश्ने बेठी होय नहि तेम खांसी करवा लागी // 36 / / PP.AC.Gunratnasuri M.S.. Jun Gun Aaradhak Trust