________________ धम्मि| यावन्मुंचति निःश्रेणी / स्वस्थाने तावदिन्यः // संकेतितो वररुचि-द्विजेनोचे स्फुटाकरं // 3 // माई हो मा मुंच निःश्रेणी / पाणिन्यां खयमाहतां // नृपः साक्ष्यस्ति शृएवंतु / सर्वे नगरवासिनः // // 35 // हैता हेममंजूषा / श्मे रत्नसमुद्भकाः / संति कित्वस्य निःश्रेण्या-मेव दृष्टिररज्यत / / 73 | // 40 // उपमर्दोचिता साधु-काष्टोचारोहकारणं // सद्मश्रीकृत्करात्तेयं / किं त्याज्या सुवधूखि // | त्यारे तेणीने मजलापर रहेली जाणीने त्यांची जतारवामाटे ते निर्लङ लफंगाए पोताना बन्ने | हाथे निसरणी पकमी. // 37 // पनी जेवो ते निसरणीने तेनी योग्य जगोए मुके जे, तेवोज | श्रेष्टिपुत्र धर्मदत्त वररुचि ब्राह्मणे संकेत करवाथी प्रकट रीते बोल्यो के, // 30 // अरे! तें पोता. नी मेळेज बन्ने हाथे पकमेली निसरणीने हवे गेड नहि. केमके या बाबतमां राजा सादा जे. तेम हे नगरलोको! तमो पण सांजो // 35 // या वहीं सुवर्णनी पेटीनं, तथा या रत्नोना डानडा पण पमेला बे, परंतु या ( मारा मित्रनी) नजर तो था निसरणीमांज खुशी थयेली . // 40 // वळी या निसरणी उत्तम स्त्रीनीपेठे उपमर्दन करवालायक (बालिंगन करवाला| यक) उत्तम काष्टवाळी (शरीरना मनोहर बांधावाळी ) तथा उपर चम्बालायक घरनी शोभा PP.AC. Gunratnasuri M.S. . Jun Gun Aaradhak Trust