________________ धम्मि- // 41 / / साधुसाध्विति जल्पाकै-म्यिवनागरैरपि // दत्ततालं ततोऽहासि / विटो हास्यास्पदं हि / | सः // 42 // अस्य दुःशीलतामर्म / धर्मदत्तेन बोधितः / नृपस्तं विषयव्याप्त-मपि निर्विषयं व्य धात् / / 43 // मादमंगलं निन-नबासौ पुरवासिनां // इति निर्वासिता मृत्वा / सुरूपा दुर्गतिं 14 गता // 44 // वनिताजनितामंद-दुःखांदोलितमानसं // अथैवमन्वशार्म-दत्तं वररुचिः सखा // 45 // दीनाराणां शतैः पंच-दशभिः पारितोऽनवः / / तथापि विप्रबुब्धोऽसि / वत्सान्यां धिक करनारी अने हाथे करीने झालेली हवे शुं तारे तजवी जोश्ये ! // 41 // व्याजबी ने व्याजवी बे, एम कहीने नगरना लोकोए पण गामडीयानीपेठे ताळी देश्ने ते लफंगानी हांसी करी, केमके ते हांसीने लायकज हतो. // 42 // पनी धर्मदत्ते तेना दुराचारनो मर्म राजाने जाहेर क. यो, त्यारे राजाए ते विषयवाळा गंगदत्तने पण विषयरहित एटले देशपार कर्यो. // 43 // पजी ते सुरूपानुं पण नाक काप्यु, अने हवे aa नकटी नगरना लोकोने अपशकुन करनारी थवी जोश्ये नहि एम विचारी ( राजाए) त्यांथी कहाडी मूकेली ते सुरूपा मरीने दुर्गतिमां गइ. // | // 44 // एवी रीते स्त्रीथी उत्पन्न थयेला अत्यंत छुःखथी अस्थिर मनवाळा ते धर्मदत्तने वररुचि | Jun Gun Aaradhak Trust P.P.AC.Gunratnasuri M.S.