________________ धम्मिः प्रासाद्यतेऽमृतरस-समानों मानवो भवः // 14 // तत्पाली केनचिन्नाना-दर्शनाममध्यगः / / मा नाग्येन सदयते जैनो / धर्मः कल्पडमोपमः // 35 // बोधिमूलं कृपा स्कंधः / शाखा दानादयो गुणाः // पत्राणि संपदः कीर्तिः / पुष्पं यस्य फलं शिवः // 16 // मिथ्यात्वतिमिरध्वस्त-विवेक 105 | मयलोचनाः // दुरीजवंति किंपाक-बुध्या तस्माकुबुष्यः // 7 // श्रुत्वेति देशनां लोके / ग. ते श्रेष्टी तमस्तुवत् // लोकद्वयातिनिकोऽपि / नास्ति त्वदपरो भुवि / / 77 // यया धर्मकथानि // 14 // ते वनना निकुंजोमां विविध दर्शनोरूपी वृदोनी बच्चे रहेला कल्पवृदासरखा जैनधर्मने कोश्कज भाग्यथी जो शके जे. // 79 // ते वृदनुं सम्यक्त्वरूपी मूल ने, दयारूपी थड ने, दा. नयादिक गुणो शाखान , संपदारूपी पत्रो , कीर्तिरूपी पुष्प ने तथा जेनुं मोदारूपी फल जे. // 76 // परंतु मिथ्यात्वरूपी अंधकारथी जेनां विवेकरूपी चक्षुन नष्ट थयेला बे एवा कुबुधिन तेने फेरी वृक्ष मानीने तेथी दूर नाशता फरे बे. // 7 // एवी रीतनी देशना सांजलीने लो. | को गयाबाद सुरेंडदत्तशेठ ते मुनिनी स्तुति करखा लाग्या के, हे जगवन् ! या पृथ्वीपर बने लो. | कोनां दुःखोनो नाश करनार थाप शिवाय बीजो कोई नथीः // 3 // जेम बाप धर्मोपदेश दे. PP.AC. Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust .