________________ सार्थ धम्मि नप्ता जलैः सिक्ता / मित्र मंत्रपवित्रिताः / अयुग्रपुण्यवत्सद्यः। प्ररोहंति फलंति च // 27 // सोड थादाय यवांस्तस्मा–निजपल्याः समार्पयत् // ययौ विप्रोऽपि धाम खं / प्रियापयदिदृदया // 7 // समादाय समं श्रेष्टि-सुतोऽपि प्राभृतं मुदा // सदाचारस्ततः सिंह-दारमाप दमापतेः॥॥ क. 56 श्चिद्देव दिदृकुस्वा-मिन्यः प्राभृतपाणिकः // दारे विलंबितोऽस्तीति / वेत्री नूपं व्यजिझपत् / / // 60 // द्राक्तं समानयात्रेति / नृपादिष्टेन वेत्रिणा // बलिः परिमलेनेव / पुष्पं निन्ये स पर्षदं / / / पवित्र थयेला या यवो वावीने जलथी सिंचवाथी अतिशय पुण्यनीपेठे तुरत नगीने फळे तेवा जे.॥ 7 // हवे ते यवो तेनीपासेथी लेश्ने तेणे पोतानी स्त्रीने आप्या, तया ते ब्राह्मण पण पोतानी स्त्री तथा संतानोने मलवानी बाथी पोताने घेर गयो. // 27 // पजी ते सदाचारवाळो श्रेष्टिपुत्र धर्मदत्त पण गेटा लेश्ने हर्षथी राजाना दरवारमा गयो. // 50 // त्यारे उमीदारे ज. इने राजाने विनंति करी के, हे स्वामी ! कोश्क शाहुकार हाथमां चेटलेश्ने अापने मळ्यानी माथी बारणे यावेलो . // 60 // तेने जलदी यहीं लाव? एवी रीते राजाए हुकम करवाथी परिमल जेम जमराने पुष्पप्रते ले जाय ने तेम ते बडीदार तेने सन्नामां ले गयो. // ...Jun Gun Aaradhak Trust P.P.AC.GunratnasuriM.S.