________________ धम्मि| रः परिसरं स्यात् // दह्यमाना वियोगेन / तृणपुलीव वह्निना // 15 // पिंडीतमिव यशो-राशि मा कारयितुः पुरः // मनःप्रसादहेतुं सा / जैनप्रासादमैदत / / 73 // तत्र प्रविश्य सार्हतं / तुष्टा तुष्टा. व जावतः // निर्वापयंती संतापं / हाई नयनवारिभिः // 14 // जय त्वं जगदाधार / जगदंघो जगद्गुरो / / जगन्नाथ जगध्येय / जगदानंददायक / / 75 // शीतार्तानामिवार्चिष्मान् / दिग्मूढाना. मिवांशुमान् // आतुराणामिव निषक / दुःखिनां त्वं गतिर्जिन // 16 // नवांजोधौ विपझारि-पूरजलदी नगरपासे यावी. // 15 // जाणे बनावनारना यशनो समूह एकठो थयो होय नहि, ए. Q एक मनोरंजक जिनमंदिर त्यां तेणीए जोयु. // 73 // तेमां जश्ने नयनाश्रुथी हृदयना संतापने दूर करीने हर्षथी भावपूर्वक तेणीए श्रीअरिहंतप्रनुनी स्तुति करी. // 14 // हे जगतना या धार जूत! हे जगतना बंधु! हे जगतना स्वामी! तथा जगतने ध्यान धरवालायक! तुं जगतने यानंद आपनारो . // 35 // वळी हे जिनेश्वर ! ठमीथी पीडायेलाजने जेम अमि, दिग्मूढोने जेम चंद्र, तथा रोगीनने जेम वैद्य तेम दुःखिनने तुंज आश्रय करवा योग्य जे. // 16 // आप.. | दारूपी जलना समूहथी परेला था संसारसमुद्रमा मनुष्यजन्मरूपी होमी मलते बते तुं तेमां / P.P.AC.GunratnasuriM.S. Jun'Gun Aaradhak Trust