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भावणा-मज्म
पं० रत्न, शास्त्रज्ञ, प्रखरवक्ता श्री उमेश मुनिजी म.
सिद्ध-झांति देवि, पुट्टिकरंति सुधम्भ-मग्गस्स ।
दलृ हियअ-पमोमो, जामो संघे गुणाकिट्ठो ।। १ ।। सिद्ध-परमात्मा का ध्यान करती हुई और उत्तम धर्म-मार्ग की पुष्टि करती हई देवी (साध्वीजी) को देखकर, श्री संघ (के अनुयायी वर्ग) के हृदय में गुणों से आकृष्ट प्रमोद हुमा।
मरुम्मि दादिया-गामे, निहि-रिसंक-भूमिए ।
भद्दवए वरा बाला, जाया सत्तिव्व सा परा-॥ २ ॥ वह (साध्वी) मरुदेश (के एक हिस्से) के दादिया ग्राम में वि. सं. १९७२ के भाद्रपद मास में (सप्तमी को) श्रेष्ठ बालिका के रूप में 'पराशक्ति' के समान जन्म पायी।
अनुपा जणणी धण्णा, मांगीलालो पिया पियो ।
तेसिमंके ठिया बाला, जोण्हागा विव सोहिया । ३ ।। माता अनुपादेवी और प्रिय पिता श्री मांगीलालजी धन्य हैं, कि जिनकी गोदी में स्थित वह बालिका चन्द्रिका के समान सुशोभित हुई।
पालिया चंपवेलिव्व, जा लालिया सुकोमला।
पत्ता जुव्वण-दारम्मि, संवेग-भाव-वासिया।। ४ ।। जिस सुकोमल (बाला) का चम्पा की लता के समान पालन किया गया, लाड प्यार किया गया, वह यौवन के द्वार में प्रवेश करते ही संवेगभाव से वासित (हदयवाली) हो गयी।
पत्ता सा सरदारत्ति, दारं समसरस्स वा।
गरुणी मोक्खमग्गम्मि. पेरगा धम्मरक्खिया ।।५।। उस (बाला) ने शम-सर-द्वार-प्रशमभावरूपी सरोवर के द्वार के समान श्री सरदार कुंवर जी गुरुणी पायी, जो मोक्षमार्ग की प्रेरिका और धर्म रक्षिका थी ।
वेअंक-निहि-भू-अद्दे, मग्गसीसेऽसियंसए।
एक्कारसीइ गिण्हेइ, पवज्जं भाणए दिणे ।।६।। विक्रम सं. १९९४ था। मार्गशीर्ष मास में कृष्णपक्षरूप विभाग चल रहा था। उसकी ग्यारस तिथि और रविवार के दिन (वह बाला) प्रव्रज्या ग्रहण कर लेती है।
आई घड़ी अभिनंदन की चरण कमल के वंदन की
प्रथम खण्ड/३
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