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तत्वभावना
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है यह निधन है, यह सुजन है यह नुसा है यह बलवान है ग्रह निर्बल है, यह विद्वान् है यह मूर्ख है, यह गुरु है यह शिष्य है, यह पूज्य है यह पूजक है, यह वंदनीय है यह वंदना करने वाला है, यह साध है यह गृहस्थ है, यह शत्रु है यह मित्र है, यह पिता है यह पुत्र है, यह माता है यह पुत्री है, यह बांधब है यह अन्य है, यह पुरुष है यह स्त्री है, यह बालक है यह जवान है, यह वृद्ध है यह शिशु है, यह निरोगी है यह सरोग है, यह हिन्दू है यह मुसलमान है, यह पारसी है यह सिक्ख है, यह जर्मन है यह जापानी है, यह अंग्रेज है यह फ्रांसीसी है, यह अमेरिकन है यह आफ्रिकाबासी है, यह गोरा है यह काला है, यह क्षत्रि है यह वैश्य है, यह ब्राह्मण है यह शूद्र है, यह पर्वत है यह नदी है, यह सूर्य है यह चन्द्र है, यह स्वर्ग है यह नर्क है, यह स्वदेश है यह परदेश है, यह यह भरत है यह विदेह है, यह घर है यह जंगल है, यह बन है यह उपवन है, यह सुवर्ण है यह कांच है, यह रत्न है यह पाषाण है, यह महल है यह श्मशान है, यह फूल है यह कंटक है, यह शय्या है यह भूमि है, यह चांदी है यह लोहा है, यह तांबा है यह मिट्टी है, यह निर्मल है यह मैली है, यह घट है यह पट है, इत्यादि जितने कुछ भेद प्रभेद हैं ये सब व्यवहारनय की दृष्टि में हैं । यही दृष्टि रागद्वेष मोह का कारण है जिन चेतन पदार्थों से अर्थात् स्त्री, पुत्र, मित्र, बंधु, पशु आदि से अपना स्वार्थ सधता है अथवा जिन अचेतन पदार्थों से अर्थात् घर, वस्त्र, वर्तन सामान आदि से अपना मतलब निकलता है उनसे तो राग