________________
दिया गया है। तीर्थंकरों के द्वारा निर्दिष्ट यह अमृतवाणी किस प्रकार उपकारी है, यह समझाने के लिए पूज्य उपाध्यायजी महाराज ने संसार की भीषणता का निर्देश किया है। संसार की भीषणता-भयंकरता को समझाने के लिए उपाध्यायजी म. ने संसार को एक जंगल की उपमा दी है।
कुछ समय के लिए आप अपनी आँखें बन्द कर दो और मन रूपी घोड़े पर सवार होकर भीषण वन में पहुँच जाओ। अब आप मन की आँखों से देखो। ओह ! ....कितना भीषण और भयंकर यह जंगल !!
चारों ओर लम्बी-लम्बी झाड़ियाँ हैं। बहुत ही विशाल क्षेत्र में यह जंगल छाया हुआ है। विराट्काय वृक्षों से यह जंगल अत्यन्त सघन बना हुआ है।
इसके साथ ही अमावस्या की घनघोर रात्रि है। चारों ओर घना अन्धकार छाया हुआ है। कहीं पर प्रकाश की एक भी किरण नजर नहीं आ रही है । __ जोर-शोर की गर्जनाओं के साथ बादल बरस रहे हैं। वर्षा की तीव्र रिम-झिम के कारण चारों ओर गहरा कीचड़ हो गया है। वर्षा के जलप्रवाह के कारण चारों ओर घास उगी हुई है। इस भीषण जंगल में हिंसक और क्रूर जंगली प्राणियों का भी प्रावास है। दूर-सुदूर से सिंह की गर्जनाएँ सुनाई दे रही हैं, जिनके श्रवण मात्र से ही कमजोर पशु थरथर काँप
चारों ओर अत्यन्त भंयकर और डरावना वातावरण है।
शान्त सुधारस विवेचन-२