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महोपाध्याय समयसुन्दर
ऋषि पुजे तप कीधौ ते कई, सांभलजो सह कोई रे। आज नइ कालै करइ कुरण एहेवा, पणि अनुमोदन थाई रे ॥१६॥
पुंजराज मुनिवर वंदो, मन भाव मुनीसर सोहै रे। उग्र करइ तप आकरौ, भवियण जन मन मोहै रे ॥३२॥
श्राज तो तपसी एहयो, पुजा ऋष सरीखो न दीसइ.रे। तेहनै वांदता विहरावतां, हरखै कवि हियड़ो हीसइ रे ।३।। एक बे वैरागी एहवा, श्रीपासचन्द गच्छ मांहि सदाई रे। गरुयड वाढइ गच्छ माहि, श्रीपासचन्द्रसूरिनी पुण्याई रे ॥३६॥
इतना ही नहीं कवि के हृदय में गच्छ वाद तो दूर रहा किन्तु श्वेताम्बर-दिगम्बर जैसे विवादास्पदीय विषयों से भी वे दूर रहे। उनके तीर्थों के प्रति भी इनकी वैसे ही श्रद्धा और आदर भक्ति है, जैसे कि अपने तीर्थों के प्रति । दिगम्बर प्रसिद्ध तीर्थस्थलों में भी कवि यात्रा करने जाता है और भाव अर्चा करता है:
"चन्द्रपुरी अवतार, लक्ष्मणा माता मल्हार,
___ चन्द्रमा लांछन सार, उरु अभिराम में। बदन पूनिमचंद, वचन शीतलचंद,
महासेन नृपचंद, नवनिधि नाम में। तेज करइ झिव झिब, फटित रतन किंव,
सांढ्यौ है............."दिगम्बर धाम में। समयसुन्दर इम, तीरथ कहइ उत्तम,
चन्द्रप्रभ भेट्यो हम, चांदवारि गाम में । ८ ।
इस प्रकार की विशाल हृदयता और उदारता उस समय के महर्षियों में भी विरलता से प्राप्त होती है जैसे कि कवि में थी।
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