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महोपाध्याय समयसुन्दर ( २३ ) को अपने गणनायक के समान ही प्रभाविक और जिनशासन का सितारा मानकर स्तुति करता है:
भट्टारक तीन भये बड़भागी। जिण दीपायउ श्रीजिनशासन, सबल पडूर सोभागी । भ०१।। खरतर श्रीजिनचन्द्रसूरीसर, तपा हीरविजय वैरागी। .. विधिपक्ष धरममूरति सूरीसर, मोटो गुण महात्यागी । भ०२। मत कोउ गर्व करउ गच्छनायक, पुण्य दशा हम जागी। समयसुन्दर कहइ तत्त्वविचारउ,भरम जाय जिम भागी। भ०३।
कवि गुग्णों का ग्राहक और साधुता का पूजक था। न तो उसके सामने गच्छ का ही महत्त्व था और न था छोटे-मोटे का ही महत्त्व, अपितु महत्त्व था तो केवल गुणों का आदर करना । यही कारण है कि पार्श्वचन्द्रगच्छ ( लघु-समुदायी) के प्राचार्य विमलचन्द्रसूरि के शिष्य पूँजा ऋषि थे जो रातिज (गुजरात) ग्राम निवासी कडुआ पटेल गोरा और धनबाई का पुत्र था और जिसने १६७० में अहमदाबाद में दीक्षा ली थी। बड़ा ही उग्र तपस्वी था। देखा जाय तो कवि, पुञ्ज। ऋषि से अवस्था, ज्ञान, प्रतिभा और चारित्र में अधिक सम्पन्न होने पर भी पूजा ऋषि की तपस्या से अत्यधिक प्रभावित होता है और श्लाघा पूर्वक रास में वर्णन करता है :श्रीपार्श्वचन्द्र ना गच्छ मांहे, ए पुनो ऋषि आज । आप तरै नै तारिवै, जिम बढ़ सफरी जहाज । ८ ।
ऋषि पुजो अति रूड़ो होवइ, जिन शासन मांहे शोभ चढावइ ।१४। तेहना गुणगातां मन मांहइ, आनन्द उपजै अति उछाहे। जीभ पवित्र हुवे जस भणतां, श्रवण पवित्र थाये सांभलतां ॥१५॥
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