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महोपाध्याय समयसुन्दर (२१) मानों तक से अपना संपर्क स्थापित कर उपदेश देता है। यही कारण है कि वह सिद्धपुर (सिन्ध ) के कार्यवाहक ( अधिकारी) मखनूम मुहम्मद शेख काजी को अपनी वाणी से प्रभावित कर समग्र सिन्ध प्रान्त में गौमाता का, पञ्चनदी के जलचर जीव एवं अन्य सामान्य जीवों की रक्षा के लिये अभय की उद्घोषणा करवाता है। इसी प्रकार जहां जेसलमेर में मीना-समाज सांडों का के पट्टधर श्रीजिनसागरसूरि प्रतिष्ठित एक मूर्ति (जो संभवतः मूलनायक की होगी !) लगभग ५४ अंगुल की थी और १०-१२ मूर्तियां छोटी मौजूद हैं । इससे निश्चित है कि कवि वर्णित खरतरवसही का ध्वंस होने से मूर्तियें उक्त मन्दिर के तलघर में रखी गई हों। + शीतपुर माहे जिण समझावियउ, मखनूम महमद सेखोजी । जीवदया पड़इ फेरावियो, राखी चिहुँ खंड रेखोजी ।।
[देवीदास कृत समयमुन्दर गीतम् ] सिंधु विहारे लाभ लियो घणो रे, रंजी मखनूम सेख। पांचे नदियां जीवदया भरी रे, वलि धेनु विशेष ।।५॥
[वादी हर्षेनन्दन कृत समयसुन्दर गीतम् ।] वादी हर्षनन्दन तो कवि के उपदेश द्वारा अकचर के हुक्म से सम्पूर्ण गुर्जर भूमि में किया हुआ अमारि पटह का भी उल्लेख करता है :
"श्रमारिपटहा गैस्तु, साहिपत्रप्रमाणतः । दापयांचक्रिरे सर्व-गुर्जराधरणीतले । १० । श्रीउच्चनगरे शेष, श्रीमखतू'म जिहानीयाम्। प्रतिबोध्य गवां घातो, वारितस्तारितात्मभिः । ११ ।”
[ऋषिमण्डल टीका प्र०] "मखतूंमजिहानीया, म्लेच्छगुरु प्रबोधकाः । सिन्धौ गोमरणभय-त्रातारः पापहर्तारः । १४।"
उ० टी०प्र०]
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