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श्रीमद्वाग्भटविरचितं नेमिनिर्वाणम् ः एक अध्ययन
पौराणिकता का समावेश अधिक है। इसमें १६ सर्ग हैं। वर्धमानचरित की अपेक्षा इसमें भाषा,
रसभाव-संयोजन, प्रकृति-चित्रण आदि कम हैं ।
१०. चन्द्रप्रभ चरित' : (असग)
चन्द्रप्रभचरित नाम का काव्य भी मिलता है ।
रचयिता : रचनाकाल
उक्त वर्धमानचरित, शान्तिनाथचरित तथा चन्द्रप्रभचरित के रचयिता महाकवि असग हैं । इनके पिता का नाम पटुमति, माता का नाम वैरेति तथा इनके पुत्र का नाम जिनाप था ।
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इनके गुरु नागनन्दि व्याकरण काव्य और जैन शास्त्रों के विद्वान् थे । महाकवि असग ने शक सं० ९१० (सन् ९८८ ई०) में वर्धमानचरित की रचना की थी । अतएव कवि का समय ईसा की दसवीं शताब्दी है ।
एकादश शताब्दी
११. पार्श्वनाथचरित' : ( वादिराज़)
पार्श्वनाथ चरित की सर्गान्त पुष्पिका में इसका नाम पार्श्वनाथ जिनेश्वरचरित और यशोधरचरित में काकुत्स्थचरित कहा गया है । इस चरितकाव्य में १२ सर्ग हैं। यह भी एक महाकाव्य है, जिसमें भगवान पार्श्वनाथ का चरित्र-चित्रण किया गया है ।
१२. यशोधरचरित : ( वादिराज)
इसमें चार सर्ग हैं, कवि ने सर्गान्त पुष्पिका में महाकाव्य कहा है । परन्तु यह एक खण्डकाव्य है । यशोधरचरित में राजा यशोधर की कथा वर्णित है । अहिंसा का प्रभाव दिखाने के लिए राजा यशोधर की कथा जैन धर्म में बहु-प्रचलित रही है ।
रचयिता : रचनाकाल
इन दोनों (पार्श्वनाथचरित और यशोधरचरित) के रचयिता वादिराज हैं। वादिराज के गुरु का नाम मतिसागर और गुरु के गुरु का नाम श्रीपाल देव था । पार्श्वनाथचरित की रचना शक सं० ९४७ (सन् १०२५ ई०) में हुई थी ।
१३. नागकुमारचरित' : (मल्लिवेण)
· नागकुमारचरित पाँच सर्गात्मक काव्य हैं इसमें श्रुतपंचमी व्रत का माहात्म्य प्रकट करने
१. जिनरत्नकोश, पृ० १९
३. मा० दि० जैन ग्रन्थमाला बम्बई से वि० सं० १९७३ में प्रकाशित
५. कर्नाटक यूनिवर्सिटी धारवाड़ से १९६३ ई० में प्रकाशित
६.इति वादिराजविरचिते यशोधरचरिते महाकाव्ये - सर्गः ११ यशोधरचरित सर्गान्त पुष्पिका । ७.हस्तलिखित प्रति आमेर शास्त्र भण्डार जयपुर में है
२. द्रष्टव्य - तीर्थङ्कर महावीर और उनकी आचार्य परम्परा, भाग-४, पृ० ११-१२
४. यशोधरचरित, १/६