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अध्याय - एक (ख) तीर्थङ्कर नेमिनाथ विषयक साहित्य जैन धर्म के २२वें तीर्थङ्कर नेमिनाथ का भारतीय जनजीवन में अप्रतिम प्रभाव रहा है । भारत के धार्मिक जीवन में जिन विभूतियों का चिरस्थायी प्रभाव है, उनमें नेमिनाथ अग्रणी हैं । जैन कवियों ने अपने साहित्य में तीर्थङ्कर महावीर और पार्श्वनाथ के बाद उन्हें सर्वाधिक स्थान दिया है । जैन कवियों की दृष्टि भाषागत विवादों से पृथक् थी । यही कारण है कि भारत की सार्वभौम भाषाओं के रूप में संस्कृत, प्राकृत, अपभ्रंश तथा क्षेत्रीय भाषाओं के रूप में हिन्दी, राजस्थानी, मराठी, गुजराती, कन्नड़, तमिल आदि सभी भाषाओं में उन्होंने नेमिनाथ विषयक साहित्य की विपुल मात्रा में रचना की है।
जैन परम्परा में बाईसवें तीर्थङ्कर नेमिनाथ की ऐतिहासिक प्रमाणिकता भले ही सिद्ध न हो सकी हो परन्तु यह निर्विवाद है कि उनका व्यक्तित्व जैन साहित्यकारों को अधिक प्रिय रहा है । वर-वेश में सुसज्जित नेमिकुमार का पशुओं का करुण क्रन्दन सुनने मात्र पर वाग्दत्ता राजुल (राजीमति) को विवाह मण्डप में विरहदग्ध छोड़कर अक्षय वैराग्य धारण कर लेना तथा रैवतक पर्वत पर दुर्धर तपश्चर्या द्वारा केवलज्ञान प्राप्त करना, साथ ही राजुल के संयम, अनन्य निष्ठा, एवं अन्त में वैराग्यपूर्वक मुक्तिलाभ की घटनाओं ने कवियों को कितना अधिक प्रभावित किया
यही कारण है कि उनके जीवन पर विशाल साहित्य लिखा गया है । यहाँ विभिन्न भारतीय भाषाओं में विरचित नेमिनाथ विषयक साहित्य का संक्षिप्त विवेचन प्रस्तुत है ।
संस्कृत १. उत्तरपुराण (गुणभद्र)
इस पुराण में २२वें तीर्थकर नेमिनाथ का कथानक सविस्तार बड़े ही रोचक ढंग से किया है। रचयिता : रचनाकाल
इस पुराणकाव्य के दो भाग हैं । प्रथम भाग के रचयिता गुणभद्र हैं तथा दूसरे भाग के लेखक उनके शिष्य लोकसेन हैं । प्रथम भाग का रचनाकाल शक सं० ७७० या ७७२ (८४८
८५० ई०) होना चाहिए। २. नाभेयनेमिद्विसन्धान : (नमिनाथचरित) (सूराचार्य) ___ इस श्लेषमय पद्य रचना में नेमिनाथ के चरित के साथ-साथ ऋषभदेव के चरित का भी अर्थ घटित होता है । १. जैन साहित्य का बृहद् इतिहास, भाग-६, पृ० ६१-६२ २. वही, पृ० ५२२