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श्रीमद्वाग्भटविरचितं नेमिनिर्वाणम् : एक अध्ययन ८८. नेमीश्वर के दश भवान्तर (ब्रह्म धर्मरूचि)
प्रस्तुत कृति में तीर्थङ्कर नेमिनाथ के पूर्वजन्मों का विस्तृत वर्णन है । काव्य की प्रतियाँ, गुटका नं० १३६, बधीचन्द्र जी का मन्दिर, जयपुर तथा गुटका नं० ८, गुटका नं० ८५, गोधों का मन्दिर जयपुर के शास्त्र भण्डारों में संग्रहीत है। रचयिता : रचनाकाल
इस कृति के रचयिता ब्रह्म० धर्मरूचि, अभयचन्द्र प्रथम के शिष्य थे और इनका रचनाकाल सत्रहवीं का पूर्वार्द्ध है । ८९. नेमिश्वर को डोरडो (कवि हर्षकीति)
इस काव्य में कुल २१ पद्य हैं और काव्य की भाषा राजस्थानी प्रधान है। इसकी प्रति शास्त्र भण्डार महावीर जी में है। रचयिता : रचनाकाल
विवेच्य काव्य के कवि हर्षकीर्ति हैं । ये सत्रहवीं शताब्दी के उत्तरार्द्ध में राजस्थान के ख्यात सन्त रहे । हर्षकीर्ति ने ही नेमिनाथ का बारहमासा (गुटका नं० १६२, वधीचन्द्र बी का मन्दिर, जयपुर) तथा नेमि-राजुल की भक्ति विषयक ६९ स्फुट पदों की रचना की थी। ९०. नेमीश्वर राजुल विवाह (ब्रह्म ज्ञानसागर)
प्रस्तुत कृति में नेमिनाथ और राजीमती के विवाह की मार्मिक घटना का चित्रण किया गया है। रचयिता : रचनाकाल
इसके रचनाकार ब्रह्म ज्ञानसागर हैं । इनके विषय में अधिक जानकारी उपलब्ध नहीं हो सकी । कृति की एकमात्र प्रति गुटका नं०५० (पत्रसंख्या २६ से ३१ तक) पटौदी के मन्दिर जयपुर के शास्त्र भण्डार में है। ९१. नेमिनाथ फाग (भट्टारक रलकीति)
इस कृति में कुल ६९ पद्य हैं जो राग केदार में निबद्ध हैं। रचयिता : रचनाकार
यह कवि की सबसे बड़ी रचना है। इस फागु में नेमिनाथ एवं राजुल का जीवन वर्णित है।
इस कृति के कृतिकार भट्टारक रत्नकीर्ति हैं, जो सत्रहवीं शताब्दी के मूर्धन्य सन्त एवं साहित्यकार थे । भट्टारक अभयनन्दी ने सं० १६३० (१५७३ ई०) में भट्टारक पद पर इनका १. द्रष्टव्य - डा० इन्दुराय जैन द्वारा लिखित 'मिशीर्षक हिन्दी साहित्य, अनेकान्त, अक्तूबर-दिसम्बर १९८६, पृ० - ११ २. वही, पृ० -११ : ३. वही, पृ० -११ ४. भट्टारक सकलकीर्ति एवं कुमुदचन्द्र : व्यक्तित्व एवं कृतित्व, पृ० १२१-१२६