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निर्वाण का संवेद्य एवं शिल्प : अलंकार
समासोक्ति :
द्वयर्थक विशेषणों द्वारा अप्राकरणिक अर्थ का भी संक्षेप से वर्णन करना समासोक्ति अलंकार कहलाता है । समान विशेषणों से, प्रस्तुत और अप्रस्तुत अर्थों की योजना कर कवि वाग्भट ने इस अलंकार का प्रयोग किया है । यथा
प्राचीं परित्यज्य नवानुरागामुपेयिवानिन्दुरुदारकान्तिः ।
उच्चैस्तनीं रत्ननिवासभूमिं कान्तां समाश्लिष्यति यत्र नक्तम् ।।
रात्री के समय उत्कृष्ट कान्तिवाला चन्द्रमा नूतन अनुराग लालिमा से अलंकृत पूर्व दिशा को छोड़कर अत्यन्त उन्नत स्तनों वाली और मनोहर रत्न निर्मित महलों की भूमि का आश्लेषण करता है । समासोक्ति द्वारा अप्रस्तुत अर्थ - जैसे कोई उत्कृष्ट इच्छा वाला नायक नवीन अनुराग - प्रेम से उन्मत्त स्त्री को छोड़कर उन्नत स्तन वाली किसी अन्य कान्ता का आश्लेषण करता है, इसी प्रकार चन्द्रमा प्राची को छोड़कर द्वारावती की उच्च भूमि का आलिंङ्गन करता था ।
अर्थान्तरन्यास :
सामान्य का विशेष से और विशेष का सामान्य से साधर्म्य या वैधर्म्य से जो समर्थन किया जाता है, उसे अर्थान्तरन्यास अलंकार कहते हैं । यथा नेमिनिर्वाण में -
सद्रराशिरिव भास्वरकायकान्तिराक्रान्तकर्मगहनोऽग्निरिव प्रदीप्तः ।
भावी सुतः स च भविष्यति तावकीनः स्वप्नाः सतां नहि भवन्त्यनपेक्षितार्थाः ।।२
रत्नों के समूह की तरह चमकती हुई शरीर कान्ति वाला, जलती हुई अग्नि की तरह गहन कर्मों को आक्रान्त कर देने वाला वह तुम्हारा पुत्र होगा । क्योंकि सज्जनों के स्वप्न अनपेक्षित अर्थ वाले नहीं होते ।
यहाँ पर भावी पुत्रोत्पत्ति रूप घटना का समर्थन सज्जनों के स्वप्न दर्शन से किया गया है, अतः यहाँ पर अर्थान्तरन्यास अलंकार है ।
प्रयोग के अन्य स्थल - चतुर्थ सर्ग - ७
नव सर्ग - १, १५, १७
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१. नेमिनिर्वाण, १/४१
पंचम सर्ग - ३३, ४१
त्रयोदश सर्ग - ८२
२. वही, ३/४३